लिख कर तेरा नाम मिटा देता हूँ मैं
सजाता हूँ फूल रोज अपने कमरे में
डरती हूँ अँधेरे से "कँवल" उसने कहा था
अरविन्द मिश्र "कँवल"
खुद को किस बात की सजा देता हूँ मैं
सबब आसुओ का कोई पूछे जो मुझसे
हंस कर तेरा नाम बता देता हूँ मैं
सजाता हूँ फूल रोज अपने कमरे में
जाने क्यों फिर उन्हें हटा देता हूँ मैं
डरती हूँ अँधेरे से "कँवल" उसने कहा था
कब्र पर उसकी एक दिया जला देता हूँ मैं
अरविन्द मिश्र "कँवल"