उसकी याद रात भर सताती रही
दिल में जज्बातों की लहरे आती रही
अब बाबस्ता हो गए हैं अंधेरो से भी
कोई रहता नहीं उसके साथ इसलिए
टुटा घर फटे कपडे खाने को दाना नहीं
हर एक मुकाम पर रूककर देखा "कँवल"
दिल में जज्बातों की लहरे आती रही
अब बाबस्ता हो गए हैं अंधेरो से भी
चाँद की चांदनी भी तो दिल जलाती रही
कोई रहता नहीं उसके साथ इसलिए
वो बुढ़िया दीवारों से उमरभर बतियाती रही
टुटा घर फटे कपडे खाने को दाना नहीं
जिंदगी गरीब पर कोड़े बरसाती रही
हर एक मुकाम पर रूककर देखा "कँवल"
मंजिले हसरत आवाज दे दे कर बुलाती रही
अरविन्द मिश्र "कँवल"