वो जब मुझे देख मुस्कुराए तो अच्छा लगता हैं
यूँ तो बिन श्रृंगार किये रूप की गागर हैं वो
हजारो होगी रूपवती पर उसके जैसी और कहाँ
पहले मिलन की यादें अक्सर दिल को बहकाती हैं
वो बिन बात खिलखिलाए तो अच्छा लगता हैं
अच्छी लगती हैं उसके मेंहदी लगे हाथों की खुशबू
वो अपने माथे पे बिंदिया सजाये तो अच्छा लगता हैं
यूँ तो बिन श्रृंगार किये रूप की गागर हैं वो
कर श्रृगार रूप और निखर जाये तो अच्छा लगता हैं
हजारो होगी रूपवती पर उसके जैसी और कहाँ
बाहों में आये और धड़क जाये तो अच्छा लगता हैं
पहले मिलन की यादें अक्सर दिल को बहकाती हैं
हर रात पहला मिलन सा बन जाए तो अच्छा लगता हैं