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Thursday, October 18, 2012

तो अच्छा लगता हैं

वो जब मुझे देख मुस्कुराए तो अच्छा लगता हैं 
वो बिन बात खिलखिलाए तो अच्छा लगता हैं 

अच्छी लगती  हैं उसके मेंहदी लगे हाथों की खुशबू 
वो अपने माथे पे बिंदिया सजाये तो अच्छा लगता हैं 

यूँ तो बिन श्रृंगार किये रूप की गागर हैं वो 
कर श्रृगार रूप और निखर जाये तो अच्छा लगता हैं 

हजारो होगी रूपवती पर उसके जैसी और कहाँ 
बाहों में आये और  धड़क जाये तो अच्छा लगता हैं 

पहले मिलन की यादें अक्सर दिल को बहकाती  हैं 
हर रात पहला मिलन सा  बन जाए तो अच्छा लगता हैं 

बेकरारी के आलम में



बेकरारी के आलम में , तनहाइयों के मौसम में
दिल आज भी रोता हैं तेरी यादो के मौसम में॥

जब मिलेगे हम तुमसे क्या क्या बाते होगी तब
सोचता रहता हूँ सारी रात चाहतो के मौसम में।।

नज़र झुका क़र बैठे हैं कुछ बोलते भी नहीं
कितने अरमान दबे थे दिल में मुलाकातों के मौसम में

मुमकीन नहीं हैं में तेरी हो जाऊ "कवँल "।
भूल जाना कसमे जो किये थे बहारो के मौसम में

प्रकृति और पुरुष

हाथों की छुवन से सिहर उठता हैं रोम रोम 
एक लावा सा उबल उठता हैं तन मन में 
और एकाकार होकर 
सम्पूर्ण हो जाने का भाव 
अपनी सीमाएं लाघ उठता हैं 

दो जिस्म और दो जान जब एकाकार होकर 
सृजन करती हैं एक नवजीवन का 
और उसी पल ठीक उसी पल 
प्रकृति और पुरुष का भाव अपने आप 
साकार हो उठता हैं 

बस थक गया हूँ सुनते सुनते

क्यूँ ऐसा लगता हैं  की 
मैं तुम्हे सुन सकता हूँ 
तुम्हारी हर बात 
वो जो तुम कहती हो और 
वो जो तुम नहीं भी कहती 

अब की आना तो मेरा वो अंश 
मुझे लौटा देना, जिसे अपने साथ ले गई हो,
जो सुन लेता हैं तुम्हारी हर बात 
और बता देता हैं तुम्हे चुपचाप 
तुम्हे खबर भी नहीं होने देता 

थक गया हूँ तुम्हे सुनते सुनते 
बस थक गया हूँ सुनते सुनते 

Monday, October 8, 2012

अरे सुनती हो ... मेरी डायरी देखी कहीं

अरे सुनती हो ... मेरी डायरी देखी कहीं 

मेरे वाक्य पुर हुवे ही नहीं थे की श्री मती जी के शुरू हो गई ..
"आज सुबह दूधवाला दूध का बिल दे कर गया था.. बिजली के बिल  की आज अंतिम तारीख थी ... राशन वाले ने पिछले महीने का बकाया होने के कारण राशन देने से मना कर दिया ...बीमा के प्रीमियम की किश्त भी भरवानी हैं ."...
(ओह इतने बिल... अभी तो तनख्वाह आई भी नहीं और बिल भी आने शुरू हो गए . तनख्वाह कब आती हैं और कब च

ली जाती हैं पता नहीं लगता ...)
कुछ बोल पता उससे पहले ही श्री मती जी ने फिर कहना शुरू किया
"मुन्ना के स्कूल से भी फ़ीस के लिए आदेश पत्र आ गया है .. चुनिया बिटिया के टूशन मास्टर ने अगले महीने से उसे पढ़ने से मना कर दिया हैं कहा की  अगर पिछला बकाया नहीं दिया तो जय राम जी की ...
(हे राम अब तो बच्चो की पढाई भी इस तनख्वाह की भेंट चढ़ जायेगा.. हमारे ज़माने में ऐसा नहीं होता था .. मेरे पिता जी मेरे स्कूल की फ़ीस अग्रिम जमा करवाते थे .. कारण उस समय पढाई पर जोर था स्कूल का ....पैसो पर नहीं. टूशन नाम की चीज़ नहीं थी ....)
मैं इस सोच में था ..की अचानक फिर डायरी की याद आई ....
मेरी डायरी.....
मेरे शब्द पुरे होते की फिर श्री मती जी शुरू हो गई ....
अरे हाँ, बाबूजी का अखबार भी कल से नहीं आएगा . अखबार वाले भी अपने अखबार का रेट बढ़ा रहे हैं ..इस पर बाबू जी ने उसे बंद करवा दिया हैं और कहा की वो सुबह का अखबार अपने मित्र के घर जा कर पढ़ लिया करेगे .....
एक बात और .... आज शाम को आते समय माँ की दवाइया लेते आना .. जाने कब से ख़त्म हुई पड़ी हैं पर माँ ने नहीं बताया अभी तक ... कल अचानक मैंने देख लिया था दवाई वाला डिब्बा ..
(ओह ....बाबु जी का अखबार और माँ की दवाई , क्या मेरे लिए डूब मरने वाली बात नहीं हैं ..वे जानते हैं की मेरे तनख्वाह कितनी हैं शायद इसीलिए खुद की जरुरी चीजों पर रोक लगा बैठे .. और मैं था की सिगरेट का पैकट ख़त्म हो गया था .. और ऑफिस जाने से पहले उस नुक्कड़ से पनवाड़ी से इक नया पैकट लेने की सोच रहा था ...
आज जाते समय उस से हिसाब पूरा करने को बोल दूंगा .. जब इतनी कठिनाई से घर चल रहा हो तो क्या फालतू में अपना कलेजा जलाऊ )

ये सोच कर जाने की तयारी करने लगा .. बाल सवारने के लिए कमरे में गया ..डेसिंग टेबल देखा तो पता लगा की श्री मती जी कई दिनों से ख़त्म हुवे क्रीम से अपना चेहरा संवार रही हैं ..अपना चेहरा आईने में देखा तो तुरंत नजरे फेर ली ... नहीं मिला पाया खुद से नजरे....
और मुड गया जाने को .... तब ही याद आया अपनी डायरी का ...जिस में अपनी कविताये संग्रह किया करता था ....पर अब लगता हैं महीने का बिल और घर का बज़ट बनाना पड़ेगा ...
श्री मती जी सुनती हो........... कहाँ हैं मेरी डायरी

बस तुम हो सिर्फ तुम

मैं कोई कवि नहीं,
जो लिखू तुम पर ढेरों कविता 
मैं तो बस मैं हूँ , बस दिल की बात कहना जानता  हूँ

मैं कोई पागल प्रेमी नहीं, 
जो फिरू रस्ते की खाक छानता 
मैं तो बस मैं हूँ, बस तेरे साथ साथ चलना चाहता हूँ
मेरी चाहत , मेरी खवाहिश मेरी हर आरजू 
बस तुम  हो सिर्फ तुम 
तेरे साथ हर पल हर लम्हा तेरे साथ जीना  चाहता हूँ 

Wednesday, June 6, 2012

यादो का कफ़न

वक़्त की अलमारी से यादों के कुछ फटे पुराने कपडे 
कुछ धुंधली सी.. कुछ मटमैली सी चादर 
जिससे उन बेकार कपड़ो की गठरी बना कर रख दिया था ..
ज़हन से दूर उस टूटी अलमारी में ...
हाँ...  उसे, उस गठरी को जिसे तुम अपने साथ नहीं लेकर गई 
छोड़ दिया था उसे मेरे लिए ... मेरे वजूद को मिटा  देने के लिए 
मगर मैं मिटा नहीं 
जिंदा जरुर हूँ एक लाश सा, 
इस इंतज़ार में की कभी तो उन यादो का कफ़न ओड़ कर सो जाउगा 
हमेशा के लिए 


Thursday, May 17, 2012

शाम के धुंधलके




शाम के धुधलके में इक तस्वीर नज़र आई
छू कर देखा तो यादो की जागीर नज़र  आई

यूँ तो खवहिश थी देखू सुबहो का सूरज मगर

सुबह होते ही पाँव में ज़ंजीर नज़र आई

सवारता था इक शक्श नसीब सबका लेकिन 

खुद के माथे की उजड़ी तकदीर नज़र आई

मजनू रांझा महिवाल की आँखों से देखता हूँ सबको

मुझे कोई लैला सोहनी कोई ,कोई हीर नज़र  आई