रात के दो बजे
नींद कहाँ थी आँखों में
और होती भी कहाँ से
बुखार से बदन तप जो रहा था
तपते बदन पर सिर्फ एक पतली सी चादर ओढ़े लेता था
और तब ही महसूस किया मैंने तुम्हरे हाथो की छुअन को
वो छुअन जलते तपते बदन पर ठंडक दे रही थी.
सहला रही थी तुम्हारे हाथो की उगलियाँ मेरे बालो को
और जाने कब मुझे नींद आ गई पता नही चला
सुबह हुई आँख खुली
बदन की तपन ख़त्म हो गई थी
बुखार उतर चूका था
तब ही मुझे एहसास हुआ तुम्हारा
जो आई थी रात में मुझे बुखार में सँभालने
अब नहीं हो मेरे पास
कौन थी तुम
हकीकत थी या ख्वाब थी
नहीं समझ पर रहा हूँ मैं
तुम्हारा वजूद हैं या मेरी कल्पना में ही जिन्दा हो
हाँ तुम कल्पना ही हो मेरे अंतर्मन की
जिसे गढ़ा था मेरे मन ने
और अपने आप को भर्मित किया ......
नींद कहाँ थी आँखों में
और होती भी कहाँ से
बुखार से बदन तप जो रहा था
तपते बदन पर सिर्फ एक पतली सी चादर ओढ़े लेता था
और तब ही महसूस किया मैंने तुम्हरे हाथो की छुअन को
वो छुअन जलते तपते बदन पर ठंडक दे रही थी.
सहला रही थी तुम्हारे हाथो की उगलियाँ मेरे बालो को
और जाने कब मुझे नींद आ गई पता नही चला
सुबह हुई आँख खुली
बदन की तपन ख़त्म हो गई थी
बुखार उतर चूका था
तब ही मुझे एहसास हुआ तुम्हारा
जो आई थी रात में मुझे बुखार में सँभालने
अब नहीं हो मेरे पास
कौन थी तुम
हकीकत थी या ख्वाब थी
नहीं समझ पर रहा हूँ मैं
तुम्हारा वजूद हैं या मेरी कल्पना में ही जिन्दा हो
हाँ तुम कल्पना ही हो मेरे अंतर्मन की
जिसे गढ़ा था मेरे मन ने
और अपने आप को भर्मित किया ......
2 comments:
अच्छी रचना
well panned bro
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