खेतों की पगडण्डी का उबड़ खाबड़ रास्ता
हज़ार बार गुजरने के बाद भी
उस रास्ते पे लडखडाती चलती गाँव की सबसे बूढी महरीन
मानो यूँ लग रही थी जैसे कोई नन्ही सी लड़की
रस्सी पे खेला दिखा रही हो
गॉंव के उत्तर में उस पोखरा के पास वाले बगिया में
जहाँ कोई भी जाने से डरता हैं
ये बूढी मेहरीन चली जाती हैं रोज
उस बगिया में
जहाँ से चुन लाती हैं झाउवा भर के सूखे आम के पत्ते
और रोज सांझ को
जला उठती हैं भार....
गॉंव के नन्हे नन्हे बच्चे हाथ में मौनी लिए
चले आते हैं उस महरीन के पास ....
दाना भुझाने
वृद्ध महरीन जिसका पूरा परिवार चला गया था शहर
और छोड़ गया था उसे अकेली
मर मर के जीने को
No comments:
Post a Comment