क़त्ल किया और खुद ही शोर मचा दिया
दोस्तों ने अपना असली रंग दिखा दिया
बेगैरत मतलबी धोखेबाज़ फरेबी बेवफा
देखो कैसे कैसे इल्जाम मुझ पर लगा दिया
बहुत सोचा मगर ग़ज़ल पूरी न कर सका
उफ़ मेरे ख्यालो ने मुझे अंगूठा दिखा दिया
वो खुदा था तो क्यों लगता था इंसान सा
उसकी हर अदा ने इबादत सीखा दिया
इश्क करना गर जुर्म हैं तो जवाब दो "कँवल"
क्यों राधा संग श्याम को मंदिर में सजा दिया
अरविन्द मिश्र "कँवल"
4 comments:
बहुत खूब अरविंद जी
ओर शुक्रिया भी
ग़ज़ल बहुत उम्दा बन पड़ी हैं
पुनः बधाई
हरीश
wakai bahut achi rachna hai
दूसरा शेर बहर से हल्का सा भटका हुआ लगा, बाकी आपका अंदाज़ खासा अच्छा है, सोच और शायरी वक़्त के साथ साथ खुद ब खुद गहरी होती जाएगी, जारी रखिये ...
Arvind ji waiting for ur next...post
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