वक़्त की अलमारी से यादों के कुछ फटे पुराने कपडे
कुछ धुंधली सी.. कुछ मटमैली सी चादर
जिससे उन बेकार कपड़ो की गठरी बना कर रख दिया था ..
ज़हन से दूर उस टूटी अलमारी में ...
हाँ... उसे, उस गठरी को जिसे तुम अपने साथ नहीं लेकर गई
छोड़ दिया था उसे मेरे लिए ... मेरे वजूद को मिटा देने के लिए
मगर मैं मिटा नहीं
जिंदा जरुर हूँ एक लाश सा,
इस इंतज़ार में की कभी तो उन यादो का कफ़न ओड़ कर सो जाउगा
हमेशा के लिए
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