शाम के धुधलके में इक तस्वीर नज़र आई
छू कर देखा तो यादो की जागीर नज़र आई
यूँ तो खवहिश थी देखू सुबहो का सूरज मगर
यूँ तो खवहिश थी देखू सुबहो का सूरज मगर
सुबह होते ही पाँव में ज़ंजीर नज़र आई
सवारता था इक शक्श नसीब सबका लेकिन
खुद के माथे की उजड़ी तकदीर नज़र आई
मजनू रांझा महिवाल की आँखों से देखता हूँ सबको
मुझे कोई लैला सोहनी कोई ,कोई हीर नज़र आई
सवारता था इक शक्श नसीब सबका लेकिन
खुद के माथे की उजड़ी तकदीर नज़र आई
मजनू रांझा महिवाल की आँखों से देखता हूँ सबको
मुझे कोई लैला सोहनी कोई ,कोई हीर नज़र आई
1 comment:
सुबह होते ही पाँव में ज़ंजीर नज़र आई |
Very Nice Said..!
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