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Monday, October 8, 2012

अरे सुनती हो ... मेरी डायरी देखी कहीं

अरे सुनती हो ... मेरी डायरी देखी कहीं 

मेरे वाक्य पुर हुवे ही नहीं थे की श्री मती जी के शुरू हो गई ..
"आज सुबह दूधवाला दूध का बिल दे कर गया था.. बिजली के बिल  की आज अंतिम तारीख थी ... राशन वाले ने पिछले महीने का बकाया होने के कारण राशन देने से मना कर दिया ...बीमा के प्रीमियम की किश्त भी भरवानी हैं ."...
(ओह इतने बिल... अभी तो तनख्वाह आई भी नहीं और बिल भी आने शुरू हो गए . तनख्वाह कब आती हैं और कब च

ली जाती हैं पता नहीं लगता ...)
कुछ बोल पता उससे पहले ही श्री मती जी ने फिर कहना शुरू किया
"मुन्ना के स्कूल से भी फ़ीस के लिए आदेश पत्र आ गया है .. चुनिया बिटिया के टूशन मास्टर ने अगले महीने से उसे पढ़ने से मना कर दिया हैं कहा की  अगर पिछला बकाया नहीं दिया तो जय राम जी की ...
(हे राम अब तो बच्चो की पढाई भी इस तनख्वाह की भेंट चढ़ जायेगा.. हमारे ज़माने में ऐसा नहीं होता था .. मेरे पिता जी मेरे स्कूल की फ़ीस अग्रिम जमा करवाते थे .. कारण उस समय पढाई पर जोर था स्कूल का ....पैसो पर नहीं. टूशन नाम की चीज़ नहीं थी ....)
मैं इस सोच में था ..की अचानक फिर डायरी की याद आई ....
मेरी डायरी.....
मेरे शब्द पुरे होते की फिर श्री मती जी शुरू हो गई ....
अरे हाँ, बाबूजी का अखबार भी कल से नहीं आएगा . अखबार वाले भी अपने अखबार का रेट बढ़ा रहे हैं ..इस पर बाबू जी ने उसे बंद करवा दिया हैं और कहा की वो सुबह का अखबार अपने मित्र के घर जा कर पढ़ लिया करेगे .....
एक बात और .... आज शाम को आते समय माँ की दवाइया लेते आना .. जाने कब से ख़त्म हुई पड़ी हैं पर माँ ने नहीं बताया अभी तक ... कल अचानक मैंने देख लिया था दवाई वाला डिब्बा ..
(ओह ....बाबु जी का अखबार और माँ की दवाई , क्या मेरे लिए डूब मरने वाली बात नहीं हैं ..वे जानते हैं की मेरे तनख्वाह कितनी हैं शायद इसीलिए खुद की जरुरी चीजों पर रोक लगा बैठे .. और मैं था की सिगरेट का पैकट ख़त्म हो गया था .. और ऑफिस जाने से पहले उस नुक्कड़ से पनवाड़ी से इक नया पैकट लेने की सोच रहा था ...
आज जाते समय उस से हिसाब पूरा करने को बोल दूंगा .. जब इतनी कठिनाई से घर चल रहा हो तो क्या फालतू में अपना कलेजा जलाऊ )

ये सोच कर जाने की तयारी करने लगा .. बाल सवारने के लिए कमरे में गया ..डेसिंग टेबल देखा तो पता लगा की श्री मती जी कई दिनों से ख़त्म हुवे क्रीम से अपना चेहरा संवार रही हैं ..अपना चेहरा आईने में देखा तो तुरंत नजरे फेर ली ... नहीं मिला पाया खुद से नजरे....
और मुड गया जाने को .... तब ही याद आया अपनी डायरी का ...जिस में अपनी कविताये संग्रह किया करता था ....पर अब लगता हैं महीने का बिल और घर का बज़ट बनाना पड़ेगा ...
श्री मती जी सुनती हो........... कहाँ हैं मेरी डायरी

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