Friday, September 17, 2010
जब मैं छोटा बच्चा था........
बात उन दिनों की हैं
जब मैं छोटा बच्चा था........
हर बात नई नई सी लगती थी
तब मुझे मेरी दादी भी परी सी लगती थी
उसकी कहानियों वाली रानी बिलकुल
मेरी सफ़ेद बालो वाली दादी लगती थी
सब की डांट से वो बचाती थी
अपने हिस्से का भी मुझे खिलाती थी
वो भी क्या दिन थे बस जन्नत सा लगता था
जब मैं छोटा बच्चा था..............
गर्मियों की छुटिया जब आती थी
मुझे मेरी दादी से दूर ले जाती थी
पर जहाँ मैं जाता था
वो भी जन्नत ही लगता था
एक और बुढिया जो मुझे हसीं लगती थी
मेरी नानी; मेरी माँ की माँ कहलाती थी
मेरी नानी मेरी दादी की ही तरह थी
न कोई किसी से कम न कोई ज्यादा थी
मेरा बचपन दोनों परियो में झूलता था
जब मैं छोटा बच्चा था.............
आज जब मैं बड़ा हो गया हूँ
उन पुराने दिनों में खो गया हूँ
उन दोनों परियो में से एक परी खो गई हैं
मेरी दादी मुझसे रूठकर एक गहरी नींद में सो गई हैं
आवाज लगता हूँ उसे पर वो कुछ नहीं बोलती हैं
उस तस्वीर में ; जो लगी हैं दीवार पर, बस मुस्कुराती हैं
काश वो वक़्त वही रुक जाता
जब मैं छोटा बच्चा था ............
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