Powered By Blogger

Thursday, October 18, 2012

बेकरारी के आलम में



बेकरारी के आलम में , तनहाइयों के मौसम में
दिल आज भी रोता हैं तेरी यादो के मौसम में॥

जब मिलेगे हम तुमसे क्या क्या बाते होगी तब
सोचता रहता हूँ सारी रात चाहतो के मौसम में।।

नज़र झुका क़र बैठे हैं कुछ बोलते भी नहीं
कितने अरमान दबे थे दिल में मुलाकातों के मौसम में

मुमकीन नहीं हैं में तेरी हो जाऊ "कवँल "।
भूल जाना कसमे जो किये थे बहारो के मौसम में

1 comment:

कमलेश खान सिंह डिसूजा said...

दिल आज भी रोता है....
लाजवाब पंक्तियाँ हैं !