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Saturday, March 13, 2010

मेरी DIARY के पन्ने PART 2



बुधवार 14 SEPTEMBAR, 2005



सुबह जल्दी उठ गए। सोनू अपनी कोचिग चला गया। जो सुबह 7 बजे से थी 11 बजे तक। मैं रूम पर था। सुबह नहाकर प्रयाग स्टेशन तक चला गयाघूमने के लिए। सोनू दास बजे तक ही लोट आया था।


दोपहर बाद खाना खा कर घूमने का निश्चय किया। सुबह से बादल छाये थे ठंडी हवा बह रही थी । लगभग तीन बजे हम आन्नद भवन घूमने निकले।

हम आन्नद भवन पैदल ही गए। पैदल चलने का मन मौसम की वजह से हुआ। ठन्डे मौसम में मजा दुगुना हो गया। आन्नद भवन के रास्ते में ALLAHABAD UNIVERSITY का ARTS DEPARTMENT का कॉलेज था।

पर फिलहाल हमारा मन आन्नद भवन जाने का था। हम आन्नद भवन ठीक समय पर पहुचे थे। अगर एक दो घंटे लेट हो जाते तो शायद आन्नद भवन बंद हो गया होता।

आन्नद भवन

यही पर हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नहेरु जी का जन्म हुआ था। यह भवन उनके पिता जी श्री मोती लाल नेहरु जी का था।

जैसे ही हम हम अंदर ENTER हुवे वो खुबसूरत भवन दिखाई दिया। वेसे वो बहुत ज्यादा विशाल न था पर उस भवन पर एक नज़र पड़ते ही दिल पर उसका जादू चढ़ गया। चारो तरफ बाग़ बना था। हरियाली चारो तरफ दिखाई दे रही थी। हालाकि फूल ज्यादा न थे, पर फूल हो या न हो ; कोई फर्क नहीं पड़ता था। क्युकी आन्नद भवन फूल से कम नहीं था।


यह भवन इंदिरा गाँधी जी ने सत्तर के दशक में नगर निगम को सौप दिया था। इस भवन की हर चीज़ लाजवाब लग रही थी। हम घुमते हुवे एक कमरे की तरफ गए जहाँ जवाहर लाल के जीवन के सफ़र से जुडी तस्वीरे लगी हुई थी। इस वक़्त आँखे बंद करता हु तो वो सभी तस्वीरे समाने दिखाई देती हैं।


वहा SOUTH INDIAN भी आये हुवे थे। वे सभी उन तस्वीरो को बड़े उत्साह से देख रहे थे । मैं भी बड़े इत्मिनान से देख रहा था पर शायद सोनू उनको देखने में कम ही दिलचस्पी ले रहा था।

कोई बात नही मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा था। तस्वीरे देख कर .भवन की तरफ गए। उसके दरवाजो पर शीशे लगे थे। अंदर लाल जी के द्वारा USED FURNITURE रखा हुआ थाहमने घूम घूम कर उन सामानों को देखा । फिर वहा से निकल कर पास में बने स्वराज भवन की तरफ गए। वहा बने एक हाल में एक शो चलता हैं जो जवाहर लाल नेहरु पर बनी कोई DOCUMENTRY FLIM थी।

हमने वो शो न देखने का सोचा। स्वराज भवन से निकल क़र हम आन्नद भवन आ गए । वाही एक रूम में एक बुक शॉप थी, बहुत सी बुक्स थी, जो सेल के लिए राखी गई थी। मुझे एक बुक पसंद आ गई जो मैंने खरीद ली ।

बुक शॉप से निकल क़र हम गार्डेन में आ गए। गार्डेन की दूसरी तरफ हाल सा था। सोनू से पूछने पर पता चला के वो तारामंडल हैं .पर वक़्त वो बंद था।


मौसम सुहाना था। ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। मेरा दिल चाह रहा था के यही पर बिठा रहू, पर आगे भी जाना था। फिर हम आन्नद भवन से निकल क़र बहार आ गए। कुछ दूर जाने पर humhe एक मंदिर मिला जिका नाम था , भरद्वाज आश्रम ,भगवान् राम अपने वन वास के समय ऋषि भरद्वाज से मिलने यही पर आये थे, ऋषि ने भगवान् को ज्ञान की बातें बताई थी।

मंदिर से आगे गए तो university के समाने आ गए । यह science डिपार्टमेंट था। पर हम अंदर न गए। आगे गए तो university road पर आये। यहाँ पर सस्ती दामो पर बुक्स मिल जाती हैं।

फिर थोडा यहाँ वहा घुमते रहे । शाम को सात बजे तक रूम पर थे।

रात में दिन भर की सैर के बारे में सोचता रहा। आन्नद भवन ,भरद्वाज आसाराम , इन सब के बारे में सोचता रहा ।

हालाकिं अल्लाहाबाद महानगर हैं , पर यहाँ सफाई पर धयान कम ही दिया जाता हैं । जहा तह कूड़ा मिल जाता थ। पर कोई बात नहीं अपनी अपनी जिम्मेदारिय होती हैं।

रात में थके होने के कारन जल्दी सो गए। सोने से पहले कल के programme के बारे में सोच लिया था। कल हम कंपनी बाग़ जाने वाले हैं।

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