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Friday, March 19, 2010

मेरी DIARY के पन्ने PART- 3

THURDAY SEP. 15, 2005

आज हम कंपनी बाग़ जाने हैं। इसीलए सुबह जल्दी उठ गए । पर दोपहर तक रुकना पड़ा। कारण बारिश । दोपहर १ बजे हम घूमने निकले । बारिश बंद हुवे अभी एक घंटा ही हुवा था। अच्छा मौसम बना हुआ था। बादल अभी भी थे।

लगभग २ बजे हम बाग़ में थे। बाग़ बहुत बड़ा व् सुंदर था । हर तरफ हरियाली नज़र आ रही थी। दोपहर होने के कारण ज्यादा भीड़ नहीं थी ; बस कुछ ही लोग नज़र आ रहे थे।

उस बाद को तीन हिस्सों में बटा था।

1. बड़ा बगीचा

2. आजाद पार्क

3. ALLAHABAD मुसयूम

बाग़ में इधर उधर घुमते रहे। फिर एक जगह बैठ गए । वाही पास में किसी की मजार बनी थी। मजार भी काफी अच्छी हालात में थी और खूबसूरत भी लग रही थी। पर मालुम न चल सका मजार किस की थी।

काफी वक़्त गुजार लेने के बाद हम आजाद पार्क की तरफ चल दिए। यही पर अंग्रेजो के साथ मुबकले में चन्द्र शेखर आजाद शहीद हुवे थे।

वो स्थान पवित्र था, जहाँ पर आजाद ने आखिरी सांस ली थी। उस स्थान पर किसी को भी बिना चप्पल जुटे उतारे जाने नहीं दिया जाता था। वहा पर एक बोर्ड भी लगा हुवा था के चप्पल जुटे उतार कर शहीद को नमन करे।हमने भी वैसा ही किया । सचमुच में बड़ा पवित्र स्थान था। उस शहीद को मैंने और सोनू ने दो मिनिट तक मौन रह कर नमन किया। उस जामुन के पेड़ के नीचे आजाद की समाधी आज भी हम सब को याद दिलाती हैं के ये आजादी जो आज हम को मिली हैं उसके पीछे न जाने कितने जाने अनजाने शहीदों के बलिदान के बाद मिली हैं। सलाम हैं उस वीर पुरुष को , जिसने कभी अंग्रेजो से हार नहीं मानी ; मौत भी खुद चुनी। खुद को मौत दी पर अंग्रेजो के हाथ नहीं आया। अंग्रेजो ने ये दिखया के आजाद उनकी गोली का शिकार हुआ ,जबकि आजाद ने खुद अपना बलिदान दिया था। उस सचे सैनिक को नम आँखों से नमन कर हम MUSEUM की तरफ चल दिए।

MUSEUM के अंदर जाने का 5/- टिकिट रखा हुआ था। 5/- भारतीयों के लिए था। विदेशियों के लिए 100/- टिकिट था। टिकिट ले कर हम अंदर गए। हमारी टिकिट एक सिपाही ने जाची । फिर अंदर जाने की इज्जात दे दी

अंदर सबसे पहले आजाद की बंदूख राखी हुई थी। और वाही पर एक तस्वीर भी थी; जो आजाद की शाहदाद के बाद की थी। काफी देर तक हम उसी बंदूख और तस्वीर को देखते रहे।

फिर आगे चल दिए। वहा अगल अगल विभाग बना रखे गए थे। देखने को बहुत कुछ था।

कहीं पुराने जमाने की मुर्तिया थी, कहीं पुराने जमाने के सिक्के तो कहीं पुराने जमाने के बर्तन , कहीं दुर्लभ जानवरों के मृत शारीर को भूसा भर कर लगा रखा गया था , तो कहीं राजे महाराजो के हथियारों की प्रदर्शनी । कहीं जवाहार लाल से सम्बंधित वस्तुवे तो कहीं सुमित्रा नन्द पंथ की। कहीं पुराने समय की पेंटिंग तो कहीं आधुनिक पेंटिंग्स । कहीं बुक्स तो कहीं देवी देवताओ के चित्र ।

हम लगभग 3 घंटे घुमते रहे। वहां अच्छी खासी भीड़ थी। सभी MUSEUM की प्रसंसा कर रहे थे। मेरा भी दिल वाह वाह कर रहा था। सच कहूँ तो वहां से आने का दिल बिलकुल भी नहीं था

फिर हम MUSEUM से निकले और राम्प्रियाकी तरफ चल दिए.

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