छोटी सी जिन्दगी में बहुत काम बाकी हैं
मुसीबत -इ -मुफलिसी से इंतकाम बाकी हैं
इब्तेदा तो अच्छी हुई नज़रो से नज़ारे मिली उनसे
राह -इ -उल्फत में अभी कई मुकाम बाकी हैं
मदभरी आँखों ने पिला दी सारी महफ़िल को
कौन कहता हैं के महफ़िल -इ -दौर -इ -जाम बाकी हैं
अपनी रूह के टुकड़े कर चूका हैं "कँवल "
देख लो देखने वालो फिर न कहना अंजाम बाकी हैं
3 comments:
अरविद जी आपके शेर बहुत अच्छे है लेकिन साडी की जगह सारी कर लें , बधाई
धन्यवाद सुनील जी आपने सुधार करवायाँ । और आपकी प्रतिक्रिया के लिए भी धन्यवाद ।
Wondrful dude ...
बात दिल तक पहुच गयी आपकी .... :-)
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