सुबह सुबह की पहली किरण सी खिड़की से झाकती हुई ।
सोया था अभी तक मैं , होले से मुझे उठाती हुई ॥
पूरा दिन काम किया आराम कहाँ था एक भी पल।
थकी हुई थी बहुत वो लेकिन दिखी मुझे मुस्काती हुई ॥
पुरे दिन भूखी रही मेरे लिए उपवास किया ।
करवा चौथ की रात चाँद में मेरा अक्श निहारती हुई॥
बहुत थी भोली बीबी मेरी बड़ी थी नादान ।
चल पड़ी हैं संग मेरे अपने ख्वाब भुलाती हुई ॥
कुछ खो गया था उसका परेशां थी बहुत।
पूछा मैंने तो कुछ न बोली अपनी आँखे चुरती हुई ॥
1 comment:
very nice............
thx 4 writing
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