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Tuesday, March 9, 2010

सुबह सुबह की पहली किरण सी खिड़की से झाकती हुई ।

सोया था अभी तक मैं , होले से मुझे उठाती हुई ॥


पूरा दिन काम किया आराम कहाँ था एक भी पल।

थकी हुई थी बहुत वो लेकिन दिखी मुझे मुस्काती हुई ॥


पुरे दिन भूखी रही मेरे लिए उपवास किया ।

करवा चौथ की रात चाँद में मेरा अक्श निहारती हुई॥


बहुत थी भोली बीबी मेरी बड़ी थी नादान ।

चल पड़ी हैं संग मेरे अपने ख्वाब भुलाती हुई ॥


कुछ खो गया था उसका परेशां थी बहुत।

पूछा मैंने तो कुछ न बोली अपनी आँखे चुरती हुई ॥


1 comment:

Unknown said...

very nice............
thx 4 writing