SATURDAY SEP 17,2005
शनिवार की सुबह ३ बजे उठ गया क्यूंकि सुल्तानपुर की ट्रेन सुबह ४ बजे थी। ट्रेन सही समय पर आई। स्टेशन पर हम लगभग १५ मिनिट पहले ही पहुच गए थे।
तीन दिन में ही अल्लाहाबाद अपना सा लगने लगा था । या कहूँ वहां से जाने का मन नहीं कर रहा था। लेकिन जाना तो था ही। ट्रेन चल पड़ी। मुझे एक बढ़िया सीट मिल गई ।
ट्रेन में ज्यादा भीड़ नहीं थी ....सुबह का समय था इसलिए । खिड़की के बहार अंधेरा था। पर न जाने क्या देखने की कोशिश में था मैं । पिचले तीन दिन आँखों के सामने गुजरने लगे ........आनन्द भवन .....कंपनी बाग़.......MUSEUM........बड़े हनुमान जी ........गंगा यमुना संगम स्थल .......... सभी आँखों में गुमने लगे। यहाँ तक की वो गलियां जहाँ से हम रोज गुजरते थे। वो दुकान जहाँ सुबह का नाश्ता करने जाता था। वो चाय की दुकान ,जहाँ शाम को चाय पी जाती थी। प्रयाग स्टेशन जहाँ से सुबह का अखबार ले के आता था।
जहाँ अल्लाहाबाद धार्मिक यात्रियों के तीर्थ स्थल हैं ; वाही विधार्थियों के लिए भी किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं हैं अल्लाहाबाद। कारन तो अल्लाहाबाद University । दूसरा वहां की कोचिंग बढ़िया हैं चाहे वो B.sc की हो या फिर PMT , PET हो या IAS . हर तरह की कोचिंग मिल जाती हैं।
वहां हर घर में विद्यार्थी रूम लेके रहते हैं। पूरा शहर ही हॉस्टल बना हुआ हैं। सोनू जहाँ रहता था वो घर यादवो का था। लाइट की कोई प्रॉब्लम न थी। य्दादा लाइट नहीं जाती थी। पानी की भी कोई समस्या न थी अच्छा इलाका था ।
सोनू ने साल भर वहां रह क़र बहुत कुछ सीख लिया था। खाना तो बहुत बढ़िया बना लेता था। मुझे कुछ भी नहीं करने देता।
अल्लाहाबाद घूमने में बड़ा मजा आया, क्यूंकि मौसम ने बहुत अच्छा साथ दिया था। तीन चार दिन धुप ही नहीं निकली ,गर्मी ने परेशां नहीं किया, ठंडी हवा में घूमने का मजा ही दुगुना हो गया था।
सूरज निकल आया था .......खिड़की से बहार दिखने लगा था। खेत .....बाग़ .......नदिया .....नहरे.....सब दिखने लगे थे। नहीं दिखा रहा था तो वो शहर जो पीछे छुट गया था ।
सुल्तानपुर ट्रेन ८ बजे सुबह पहुची । ९ बजे तक मैंने पांडेयपुर में था। ................................
आज भी अलाहाबाद में यादो में बसा हुआ हैं , एक दिन दुबारा जाउगा गंगा माँ के शहर , चन्द्र शेखर के शहर, नहेरु चाचा के शहर..........
1 comment:
Arvind ji ab to muje bhi Alaahabaad jana padega............
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